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admin
2024-07-02
Website Kya Hai ?
क्या आपको पता है वेबसाइट क्या है (What is website in Hindi) और Website कितने प्रकार के होते हैं। ऐसे बहुत सारे सवाल बहुत आजकल हर किसी के मन में आते है. क्यूँ ना आज के लेख में हम इसके बारे में विस्तार से चर्चा करें. यही नहीं इस विषय के सम्बन्धी और जितनी भी जानकारी है, उन सभी के बारे में हम चर्चा करेंगे जिससे की आपके मन में कोई ओर सवाल ना आए। हर किसी के पास Mobile, Laptop और tablet हैं, सायद आपके पास भी इनमे से एक तो जरुर होगा. वरना मेरा ये लेख आप कहाँ से पढ़ पाते अभी. इनसे हम बहुत सारे कार्य करते हैं, जैसे Game खेलना, गाने सुनना, Movie देखना आपको ये कार्य करने के लिए कोई Internet की आवस्यकत नहीं है । परंतु कुछ दुसरे कार्य जैसे किसको email भेजना, online Shopping करना, Information search करना और Online Business करना, Online Movie Ticket, Train ticket, Hotel Book करना इन सभी कार्य के लिए Internet बहुत ही जरुरी है। चलिए कुछ नया सीखने में देरी क्यूँ, अब विस्तार से इस विषय पे चर्चा करेंगे है के आख़िर में वेबसाइट क्या होता है। वेबसाइट क्या है – Website in Hindi बहुत सारे Webpages के Collections को Website कहते हैं. यह भी कहा सकते हैं एक website या site एक एसा Location हैं जाहाँ बहुत सारे webpages को रखा जाता है. हर webpage में कुछ ना कुछ Information होती है। जैसे अभी आप एक website के एक पेज पे हैं जिस पेज पे “website क्या है” इसकी जानकारी है. और यह webpage हमारी Website जिसका नाम है computerexam.in (https://computerexam.in) का ही एक हिस्सा है। जब हमारे पेज के दुसरे पोस्ट के उपर आप क्लिक करेंगे तो एक नया पेज खुलेगा वो भी एक webpage ही है। Website को Open करने के लिए हम एक application या software का इस्तमाल करते हैं. जिसको हम कहते हैं web Browser. EX- Google chrome, Operamini, UC Browser। अगर अभी भी आपको समझ में नहीं आया तो मेरा ये ex को पढ़ें-आपके सारे संदेह दूर कर देगा, जैसे की मैंने कहा https://computerexam.in यह website है और इस site के Home page पे जब आप होंगे आपको बहुत सारे post देखने को मिलेंगे जो कुछ ओर नहीं वो अलग अलग webpage के address/link हैं। एसे webpages हमारे site पे करीबन 300-400 होंगे. हर पेज में कुछ जानकारी होती है। अब इस वाक्य को पढ़ें “बहुत सारे WebPages के Collections को Website कहते हैं”। शायद आप समझ गए होंगे। वेबसाइट की परिभाषा Static Web Page Static Web Page इसके नाम से ही आप समझ गए होंगे की ये एसा page है. जहाँ सारे कभी भी नहीं बदलते है page fixed रहते हैं. जिनको कोई भी इन्हें बदल नहीं सकता है. ये static web pages हर नए और पुराने user के लिए एक जैसे ही होते हैं. आप जब भी website open करते है देखे होंगे जिन pages के content कभी नहीं बदलते है। वो पेज हर किसी के लिए एक जैसे दिखाई देते हैं. लेकिन कुछ site है, जैसे Facebook.com जिनके page के content हर वक्त बदलते रहते हैं और अलग अलग यूजर के लिए अलग webpage होते हैं। यहाँ कुछ static web page के कुछ उदहारण है. EX- about us page और Contact us page जीनके content कभी बी नहीं बदलते हैं. उमीद है अब आपको आसानी हो गई होगी static page को समझने में. अब जानते हैं dynamic webpage। Dynamic Web Page शायद आप static web page को समझ गए हैं तो इसे भी बड़ी आसानी समझ जाओगे. क्यूंकि Dynamic web page content हमेसा बदलते रहते हैं. यहाँ पे हर user मतलब आपके लिए जो पेज खुले हागा वो मेरे लिए कुछ और होगा. जैसे fb में जब मै login करता हूँ तो मेरा पेज आपके fb page से काफी अलग होगा। Dynamic का मतलब है, जो पेज बार बार बदलता रहता है. वैसे ही और एक example लेलो shopping sites के हर web pages भी हर user के लिए बदलते रहते हैं. क्यूंकि आप कुछ search करते होंगे लेकिन मै कुछ दूसरा page shopping करने के लिए पेज OPEN कर सकता हूँ। ये दोनों dynamic webpage के उदाहाण है. क्या आप अपनी वेबसाइट अपने पसंद की Design की बनाना चाहते हो तो आपको php सिखाना होगा चलिए अब इसके बारे में ही बात करेंगे। Home Page Website के पहले Page को Homepage कहते हैं. या जब कोई Website को Visit करते हैं तब जो Page खुलता है उसे ही Home Page कहते हैं. ex: https://computerexam.in इसमें click करने के बाद जो page खुलेगा उसे इस Site का Home Page कहते हैं। website के root Directory में ये Page रहता है. इस पेज में ये सारे Files भी रहते हैं index.html, index.htm, index.shtml, index.php, default.html और home.html
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Admin
2024-09-05
इंटरनेट क्या है? – What is Internet in Hind
Internet in Hindi – इंटरनेट क्या है? इंटरनेट दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है जो पूरी दुनिया में फैला रहता है. इंटरनेट को हिंदी में ‘अंतरजाल’ कहते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो, “इंटरनेट एक वैश्विक (global) नेटवर्क है जिसमें बहुत सारें कंप्यूटर आपस में एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं.” इंटरनेट बहुत सारें छोटे नेटवर्कों का एक समूह होता है इसलिए इंटरनेट को ‘नेटवर्कों का नेटवर्क’ भी कहा जाता है. इंटरनेट एक वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) है जिसमें डाटा को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) का इस्तेमाल किया जाता है. Internet का पूरा नाम ‘Interconnected Network (इंटरकनेक्टेड नेटवर्क)’ होता है. आप दुनिया में किसी भी कोने पर पर मौजूद हो, आप इंटरनेट का इस्तेमाल करके कोई भी जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. इंटरनेट ‘क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर’ पर कार्य करता है. वह व्यक्ति जो इंटरनेट पर मौजूद information (सूचना) का प्रयोग करता है उसे क्लाइंट कहा जाता है और वह कंप्यूटर जिसमें यह सूचना स्टोर रहती है उसे सर्वर कहा जाता है. इंटरनेट का अविष्कार 1 जनवरी 1983 को Vint Cerf और Bob Kahn ने किया था. इसलिए Vint Cerf और Bob Kahn को ‘इंटरनेट का पिता’ भी कहा जाता है. इंटरनेट का कोई भी मालिक नहीं है क्योंकि किसी एक व्यक्ति, देश, या कंपनी का इंटरनेट पर अधिकार नहीं होता. भारत में पहली बार 14 अगस्त 1995 को इंटरनेट लांच हुआ था. तब उस समय इसकी स्पीड बहुत कम हुआ करती थी. इंटरनेट एक ऐसा नेटवर्क है जो दुनिया भर के डिवाइसों और कंप्यूटरों को www (वर्ल्ड वाइड वेब) के साथ जोड़ता है। इंटरनेट एक ऐसी सुविधा है जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के लोगो के साथ संचार (communication) करने के लिए किया जाता है। इंटरनेट का इस्तेमाल डेटा को ट्रांसफर करने , वीडियो कालिंग करने , मनोरजन करने के लिए भी किया जाता है। आज के समय में इंटरनेट सूचनाओं को एक स्थान से दुसरे स्थान में भेजने के लिए सबसे तेज और अच्छा साधन है। आज के समय में इंटरनेट लोगो के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चूका है क्योकि बिना इंटरनेट के लोग एक पल भी नहीं बिता सकते। आज इंटरनेट ने हर एक चीज़ को ऑनलाइन कर दिया है जैसे की :- मनी ट्रांसफर, ऑनलाइन टिकट बुकिंग, ऑनलाइन परीक्षा, ऑनलाइन पढाई आदि। . इंटरनेट के प्रकार – Types of Internet in Hindi Internet के बहुत सारें प्रकार होते हैं जिनके बारें में नीचे दिया गया है:- 1- Dial-Up (डायल अप) Dial-Up इंटरनेट को एक्सेस करने की सबसे पुरानी तकनीक है. डायल-अप कनेक्शन में इंटरनेट एक्सेस करने के लिए कंप्यूटर को टेलीफ़ोन लाइन के साथ जोड़ा जाता है। Dial Up की इंटरनेट स्पीड काफी धीमी है जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल आज के समय में बहुत कम किया जाता है. 2- Broadband (ब्रॉडबैंड) यह इंटरनेट से जुड़ने का एक लोकप्रिय तरीका है जिसमे केबल की मदद से इंटरनेट को एक्सेस किया जाता है। ब्रॉडबैंड यूजर को हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा प्रदान करता है जिसकी वजह से यूजर डेटा और फाइलों को तेज गति से ट्रांसफर कर सकता है। इसकी स्पीड 100 mbps तक होती है. 3- Wi-Fi (वाई-फाई) WI-FI का पूरा नाम Wireless Fidelity (वायरलेस फिडेलिटी) होता है. Wi-Fi में इंटरनेट के साथ जुड़ने के लिए किसी भी प्रकार की केबल का उपयोग नहीं किया जाता है। Wi-Fi की अधिकतम रेंज 100 मीटर होती है. इसलिए हमें इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए 100 मीटर के अंदर ही रहना होता है. यदि हम 100 मीटर से बाहर चले जाते हैं तो हम Wi-Fi का इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे. 4- Satellite (सेटेलाइट) Satellite का इस्तेमाल उन जगहों पर इंटरनेट की सुविधा देने के लिए किया जाता है जहां ब्रॉडबैंड की सुविधा मौजूद नहीं होती। यह एक वायरलेस कनेक्शन है जिसमे इंटरनेट से जुड़ने के लिए केबल का उपयोग नहीं करना पड़ता. इसकी स्पीड बहुत ही कम होती है. 5- ISDN ISDN का पूरा नाम Integrated Service Digital Network (इंटीग्रेटेड सर्विस डिजिटल नेटवर्क) होता है. यह एक टेलीफोन नेटवर्क है जो ग्राहकों को इंटरनेट के साथ वॉयस कॉल और डेटा ट्रांसफर जैसी सुविधाएं भी प्रदान करता है। 6- Leased Line (लीज्ड लाइन) Leased Line एक टेलीफोन लाइन होती है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट को एक्सेस करने के लिए किया जाता है. लीज्ड लाइन का इस्तेमाल सिर्फ बहुत बड़ी कंपनीयों के द्वारा ही किया जाता है. इसकी स्पीड 1 Mbps से 10 Gbps तक होती है. Internet Connection Protocols in Hindi – इंटरनेट कनेक्शन के प्रोटोकॉल Internet में इस्तेमाल होने वाले प्रोटोकॉल निम्नलिखित हैं:- 1- TCP/IP TCP/IP इंटरनेट कनेक्शन का सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल है. इसमें TCP का पूरा नाम (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल) होता है जो नेटवर्क को आपस में जोड़ता है। IP का पूरा नाम (इन्टरनेट प्रोटोकॉल) होता है जिसका इस्तेमाल डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है। इसे पूरा पढ़ें:- TCP/IP मॉडल क्या है? 2- FTP FTP का पूरा नाम (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) होता है। यह एक ऐसा प्रोटोकॉल है जिसकी मदद से यूजर एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में दस्तावेज़, टेक्स्ट फाइल, मल्टीमीडिया फाइल, प्रोग्राम फाइल आदि को ट्रांसफर करता है। इसे पूरा पढ़ें:- FTP क्या है? 3- HTTP HTTP का पूरा नाम (हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल) होता है। इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल इंटरनेट पर सुरक्षित तरीके से ब्राउज़िंग करने के लिए किया जाता है। HTTP का ज्यादातर उपयोग बैंकिंग के क्षेत्र में किया जाता है।
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Admin
2024-09-06
WWW in Hindi – WWW क्या है?
.WWW का पूरा नाम World Wide Web (वर्ल्ड वाइड वेब) होता है। इसे W3 या Web के नाम से भी जाना जाता है। .WWW इंटरनेट में मौजूद सभी वेबसाइटों का एक संग्रह (collection) होता है. ये सभी वेबसाइट वेब सर्वर में स्टोर रहती हैं. .दुसरे शब्दों में कहें तो, “WWW एक प्रकार की सर्विस है जिसका उपयोग इंटरनेट में मौजूद जानकारी और रिसोर्स को एक्सेस करने के लिए किया जाता है।” .वर्ल्ड वाइड वेब का अविष्कार टिम बर्नर्स ली (Tim Berners Lee) ने 1989 में किया था, इसलिए टिम बर्नर्स ली को WWW का जनक कहा जाता है। .वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट का एक अहम हिस्सा है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट पर जानकरी को शेयर करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग करके यूजर दुनिया के किसी भी कोने से वेबसाइट में मौजूद जानकारी को एक्सेस कर सकता है। .उदहारण के लिए– यदि किसी यूजर को ehindistudy की वेबसाइट पर डायरेक्ट जाना है तो वह वेब ब्राउज़र में www.ehindistudy.com दर्ज करके सीधे वेबसाइट में प्रवेश कर सकता है। .WWW का इस्तेमाल कोई भी व्यक्ति मुफ़्त (free) में कर सकता है और यह सभी डिवाइसों में चलता है. WWW की विशेषताएं – Characteristics of WWW in Hindi 1:- Cross Platform (क्रॉस प्लेटफ़ॉर्म) वर्ल्ड वाइड वेब cross platform होता है. इसका मतलब यह है कि यह सभी डिवाइसों और ऑपरेटिंग सिस्टम में चलता है. 2:- Open Source (ओपन सोर्स) WWW ओपन सोर्स होता है. इसका मतलब यह है कि इसका इस्तेमाल कोई भी व्यक्ति मुफ्त में कर सकता है. 3:- Distributed (डिस्ट्रिब्यूटेड) यह डिस्ट्रिब्यूटेड होता है. इसका अर्थ है कि WWW का इस्तेमाल एक समय में बहुत सारें लोग कर सकते हैं. 4:- Hypertext (हाइपरटेक्स्ट) इन्टरनेट में मौजूद वेबसाइट में बहुत प्रकार की जानकारी मौजूद होती है. यह जानकारी text, image, audio और video के रूप में होती है. WWW में इन सभी जानकारी को आपस में जोड़ने के लिए हाइपरटेक्स्ट का इस्तेमाल किया जाता है. 5:- Dynamic (डायनामिक) WWW डायनामिक होता है क्योंकि इसमें मौजूद जानकारी लगातार बदलते रहती हैं. 6– Not Mandatory (आवश्यक नहीं) किसी वेब पेज या वेबसाइट को एक्सेस करने के लिए जरुरी नहीं है कि हम www का उपयोग करे। हम www के बिना भी वेबसाइट या वेबपेज को एक्सेस कर सकते है। वर्ल्ड वाइड वेब के घटक – Components of WWW in Hindi WWW के मुख्य रूप से तीन घटक होते है:- .URL .HTTP .HTML 1- URL URL का पूरा नाम Uniform Resource Locator (यूनिफ़ॉर्म रिसोर्स लोकेटर) है। URL एक एड्रेस होता है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट में मौजूद वेबसाइट या वेब पेज को एक्सेस करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए– “https://www.facebook.com” एक URL है. 2- HTTP HTTP का पूरा नाम Hyper Text Transfer Protocol (हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल) होता है. यह एक प्रकार का प्रोटोकॉल है जिसका इस्तेमाल वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर के बीच कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है। HTTP के बिना यूजर वेबसाइट को एक्सेस नहीं कर सकता। 3- HTML HTML का पूरा नाम Hyper Text Markup Language (हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज) होता है. HTML का इस्तेमाल वेबसाइट और वेब पेज को बनाने के लिए किया जाता है। WWW काम कैसे करता है? वर्ल्ड वाइड वेब की working को नीचे दिए गये steps के द्वारा आसानी से समझ सकते है. 1:- सबसे पहले वेबसाइट के एड्रेस (https://ehindistudy.com) को वेब ब्राउज़र के एड्रेस बार पर लिखना होता है. 2:– इसके बाद ब्राउज़र DNS (डोमेन नेम सर्वर) से ehindistudy के IP address की request करता है. 3:– IP एड्रेस मिल जाने के बाद ब्राउज़र वेब सर्वर से वेब पेज की request करता है. 4:– इसके बाद वेब सर्वर को वेब पेज की request प्राप्त होती है. और वेब सर्वर इस request के आधार पर वेब पेज सर्व करता है. 5:– अंत में वेब ब्राउज़र को वेब पेज प्राप्त हो जाता है. WWW का इतिहास- History of WWW in Hindi WWW का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है इसका आविष्कार 1989 में टिम बर्नर्स-ली (Tim Berners-Lee) के द्वारा किया गया था। Tim Berners-Lee को WWW का पिता भी कहा जाता है. ये कंप्यूटर वैज्ञानिक थे। टिम बर्नर्स ली का जन्म लंदन में हुआ था और इन्होने अपनी पढाई Oxford University से पूरी की . टिम बर्नर्स-ली के माता पिता भी कंप्यूटर साइंटिस्ट थे जो कम्प्यूटरो पर रिसर्च किया करते थे। बचपन में टिम बर्नर्स-ली को पढाई में कोई रूचि नहीं थी उस समय उनकी रूचि केवल ट्रेनों में थी जैसे ट्रैन के मॉडल को समझना , ट्रेनों से संबंधित gadgets बनाना आदि। सर टिम बर्नर्स-ली को WWW बनाने का ख्याल तब आया जब उन्होंने यह देखा की दुनिया भर के लोगो को जानकारी साझा करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ल्ड वाइड वेब को विकसित करते वक़्त टिम बर्नर्स-ली को बहुत सी प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ा था। टिम बर्नर्स ली ने 1989 में आख़िरकार www को विकसित कर लिया। जब www का अविष्कार हो गया तब व्यज्ञानिक जानकारी को आसानी से साझा (share) कर पा रहे थे। 1990 के अंत तक Tim Berners Lee के द्वारा तीन तकनीकों के बारे में लिखा जिनमे HTML, URL और HTTP जैसी तकनीकें शामिल है। इन सभी तकनीकों का इस्तेमाल आज भी WWW में किया जाता है। 1991 में टीम बर्नर्स ली ने www सॉफ्टवेयर को लांच कर दिया जिसमे लाइन-मोड’ ब्राउज़र, वेब सर्वर सॉफ्टवेयर और डेवलपर्स के लिए पुस्तकालय (libraries) शामिल थी। शुरुआती दिनों में बहुत कम लोग ही ऐसे थे जो वर्ल्ड वाइड वेब जैसी तकनीक का उपयोग कर पाते थे। इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए ली , ने www को और ज्यादा सरल बना दिया। 1994 में टिम बर्नर्स-ली W3C (World Wide Web Consortium) स्थापना की जो एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय (international community) है।
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Admin
2024-09-06
HTTP - Status Codes
The Status-Code element in a server response, is a 3-digit integer where the first digit of the Status-Code defines the class of response and the last two digits do not have any categorization role. There are 5 values for the first digit: 1. 1xx: Informational It means the request has been received and the process is continuing. 2. 2xx: Success It means the action was successfully received, understood, and accepted. 3. 3xx: Redirection It means further action must be taken in order to complete the request. 4. 4xx: Client Error It means the request contains incorrect syntax or cannot be fulfilled. 5. 5xx: Server Error It means the server failed to fulfill an apparently valid request. 1xx: Information --------------------- * 100 Continue Only a part of the request has been received by the server, but as long as it has not been rejected, the client should continue with the request. * 101 Switching Protocols The server switches protocol. ------------------------------------------------------------------------------------------------------- 2xx: Successful -------------------- * 200 OK The request is OK. * 201 Created--- The request is complete, and a new resource is created . * 202 Accepted---The request is accepted for processing, but the processing is not complete. * 203 Non-authoritative Information---The information in the entity header is from a local or third-party copy, not from the original server. * 204 No Content---A status code and a header are given in the response, but there is no entity-body in the reply. * 205 Reset Content---The browser should clear the form used for this transaction for additional input. * 206 Partial Content---The server is returning partial data of the size requested. Used in response to a request specifying a Range header. The server must specify the range included in the response with the Content- Range header. ------------------------------------------------------------------------------------------------------- 3xx: Redirection --------------------- * 300 Multiple Choices---A link list. The user can select a link and go to that location. Maximum five addresses . * 301 Moved Permanently---The requested page has moved to a new url . * 302 Found---The requested page has moved temporarily to a new url . * 303 See Other--The requested page can be found under a different url . * 304 Not Modified---This is the response code to an If-Modified-Since or If- None-Match header, where the URL has not been modified since the specified date. * 305 Use Proxy---The requested URL must be accessed through the proxy mentioned in the Location header. * 306 Unused---This code was used in a previous version. It is no longer used, but the code is reserved. * 307 Temporary Redirect---The requested page has moved temporarily to a new url. ------------------------------------------------------------------------------------------------------- 4xx: Client Error --------------------- * 400 Bad Request---The server did not understand the request. * 401 Unauthorized---The requested page needs a username and a password. * 402 Payment Required---You can not use this code yet. * 403 Forbidden---Access is forbidden to the requested page. * 404 Not Found---The server can not find the requested page. * 405 Method Not Allowed---The method specified in the request is not allowed. * 406 Not Acceptable---The server can only generate a response that is not accepted by the client. * 407 Proxy Authentication Required---You must authenticate with a proxy server before this request can be served. * 408 Request Timeout---The request took longer than the server was prepared to wait. * 409 Conflict---The request could not be completed because of a conflict. * 410 Gone---The requested page is no longer available . * 411 Length Required---The "Content-Length" is not defined. The server will not accept the request without it . * 412 Precondition Failed---The pre condition given in the request evaluated to false by the server. ------------------------------------------------------------------------------------------------------- 5xx: Server Error --------------------- * 500 Internal Server Error---The request was not completed. The server met an unexpected condition. * 501 Not Implemented---The request was not completed. The server did not support the functionality required. * 502 Bad Gateway---The request was not completed. The server received an invalid response from the upstream server. * 503 Service Unavailable---The request was not completed. The server is temporarily overloading or down. * 504 Gateway Timeout---The gateway has timed out. * 505 HTTP Version Not Supported---The server does not support the "http protocol" version. 413 Request Entity Too Large The server will not accept the request, because the request entity is too large. 414 Request-url Too Long The server will not accept the request, because the url is too long. Occurs when you convert a "post" request to a "get" request with a long query information . 415 Unsupported Media Type The server will not accept the request, because the mediatype is not supported . 416 Requested Range Not Satisfiable The requested byte range is not available and is out of bounds. 417 Expectation Failed The expectation given in an Expect request-header field could not be met by this server.
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Admin
2024-09-07
HTML Editors
HTML Editors Name List:- * VS Code * Notepad * Notepad++ * Sublime Text * Atom * Bluefish * CodePen * Brackets * Replit
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2024-09-07
What is HTML?
What is HTML? HTML (HyperText Markup Language) was created by Tim Berners-Lee in 1991 as a standard for creating web pages. It's a markup language used to structure content on the web, defining elements like headings, paragraphs, links, and images. HTML forms the backbone of web content. In layman's terms, HTML is like the skeleton of a website. It's a set of instructions that tells a web browser how to display text, images, videos, and other elements on a webpage. Think of it as the building blocks that create the structure and look of a website, similar to how bricks and mortar are used to build a house. In a nutshell: HTML is the language of the web, used to create websites. HTML defines the barebone structure or layout of web pages that we see on the Internet. HTML consists of a set of tags contained within an HTML document, and the associated files typically have either a ".html" or ".htm" extension. There are several versions of HTML, with HTML5 being the most recent version. Features of HTML It is platform-independent. For example, Chrome displays the same pages identically across different operating systems such as Mac, Linux, and Windows. Images, videos, and audio can be added to a web page (For example - YouTube shows videos on their website) HTML is a markup language and not a programming language. It can be integrated with other languages like CSS, JavaScript, etc. to show interactive (or dynamic) web pages Why the Term HyperText & Markup Language? The term 'Hypertext Markup Language' is composed of two main words: 'hypertext' and 'markup language.' 'Hypertext' refers to the linking of text with other documents, while 'markup language' denotes a language that utilizes a specific set of tags. Thus, HTML is the practice of displaying text, graphics, audio, video etc. in a certain way using special tags. Note: Tags are meaningful texts enclosed in angle braces, like ''. For example, the '' tag. Each tag has a unique meaning and significance in building an HTML page, and it can influence the web page in various ways.
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Admin
2024-09-09
Introduction Of Computer
*-Computer-* What is a Computer? COMPUTER is not just a mere word but an acronym that holds the key to understanding the purpose and significance of these remarkable machines. Let’s dive into its expanded form: C – Common: The term “Common” refers to the widespread availability and utilization of computers. In today’s digital age, computers have become a common tool used by individuals, organizations, and institutions around the globe. They have transformed the way we communicate, work, and access information. O – Operating: The term “Operating” signifies the functionality of a computer. An operating system serves as the intermediary between the user and the computer’s hardware. It enables users to interact with the computer, run applications, and perform various tasks. Operating systems like Windows, macOS, and Linux are fundamental components of a computer’s functionality. M – Machine: The term “Machine” emphasizes the mechanical nature of a computer. At its core, a computer is a complex machine that processes data, performs calculations, and executes instructions. It consists of various hardware components such as the central processing unit (CPU), memory, storage, input/output devices, and more. These components work together to carry out the operations required to run software and perform tasks. P – Purposely: The term “Purposely” highlights the intentional and deliberate use of computers. Computers are designed with specific goals in mind, addressing various needs and requirements. They are versatile tools capable of supporting a wide range of purposes, including business operations, scientific research, creative endeavors, and educational pursuits. U – Used for: The term “Used for” signifies the practical applications and utility of computers. They are employed for countless tasks, including data analysis, graphic design, programming, simulations, communication, entertainment, and much more. Computers have greatly enhanced productivity and efficiency in nearly every sector, contributing to advancements across industries. T – Technological: The term “Technological” reflects the integral role of computers in technology-driven advancements. Computers have become the backbone of technological progress, enabling innovations in fields such as artificial intelligence, robotics, virtual reality, and data analytics. They are instrumental in solving complex problems, processing vast amounts of information, and pushing the boundaries of what is possible. E – Educational: The term “Educational” emphasizes the significance of computers in the realm of learning and research. Educational institutions, from schools to universities, rely heavily on computers to enhance teaching methods, facilitate distance learning, and provide access to vast educational resources. Computers enable students and researchers to gather information, conduct experiments, collaborate, and analyze data efficiently. R – Research: The term “Research” highlights the integral role of computers in advancing knowledge and conducting scientific investigations. Researchers across various disciplines utilize computers to perform simulations, process data, model complex systems, and analyze results. Computers have revolutionized the research process, enabling scientists to make breakthroughs and accelerate progress. -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- .कंप्यूटर एक मशीन है जो यूजर के द्वारा दिए गये निर्देशों का पालन करती है और इन निर्देशों को प्रोसेस करके आउटपुट प्रदान करती है. .दूसरे शब्दों में कहें तो, “कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो यूजर के द्वारा दिए गये निर्देश या कमांड को इनपुट के रूप में लेता है और इस निर्देश को प्रोसेस करके आउटपुट प्रदान करता है.” .कंप्यूटर का मुख्य काम गणना करना, डाटा को स्टोर और प्रोसेस करना होता है. .Computer का पूरा नाम Common Operating Machine Purposely Used for Technological and Educational Research (कॉमन ऑपरेटिंग मशीन पर्पसली यूज्ड फॉर टेक्नोलॉजिकल एंड एजुकेशनल रिसर्च) होता है. .Computer शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी के compute शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ‘गणना करना’. .कंप्यूटर का अविष्कार ‘चार्ल्स बेबेज (Charles Babbage)’ ने किया था. इसलिए चार्ल्स बेबेज को ‘कंप्यूटर का पिता’ भी कहा जाता है. .हम कंप्यूटर का इस्तेमाल गेम खेलने, पढाई करने, डॉक्यूमेंट को टाइप करने, विडियो देखने और इंटरनेट चलाने के लिए कर सकते हैं. .कंप्यूटर एक मशीन है जो बिना थके बहुत लम्बे समय तक कार्य कर सकता है. मनुष्य लम्बे समय तक लगातार काम नहीं कर सकता और इसे आराम की जरूरत होती है. लेकिन कंप्यूटर लम्बे समय तक बिना थके और बिना गलती किये काम करता है. .कंप्यूटर को हिंदी में ‘संगणक’ कहा जाता है. -Working Of Computer- कंप्यूटर के कार्य करने के तीन step होते है:- .Input (इनपुट) – इनपुट वह प्रक्रिया है जिसमें यूजर के द्वारा कंप्यूटर को निर्देश या कमांड दिया जाता है. .Process (प्रोसेस) – इस स्टेप में, कंप्यूटर निर्देश को प्रोसेस करता है. .Output (आउटपुट) – इस स्टेप में, कंप्यूटर यूजर को आउटपुट प्रदान करता है. -Types of Computer- 1- Micro Computer (माइक्रो कंप्यूटर) माइक्रो कंप्यूटर एक ऐसा कंप्यूटर है जिसका उपयोग एक समय में केवल एक व्यक्ति ही कर सकता है। इस कंप्यूटर का आकार काफी छोटा होता है। यह mini और mainframe computer से काफ़ी छोटा होता है। यह हल्का होने के साथ काफी सस्ता भी होता है। माइक्रोकंप्यूटर मल्टीटास्किंग होता है जिसका अर्थ यह है की यूजर इस कंप्यूटर में एक समय में बहुत सारें कार्य कर सकता हैं जैसे कि – इंटरनेट चलाना, word में काम करना और गाने सुनना आदि। इसके कुछ लोकप्रिय उदहारण – लेपटॉप, स्मार्ट फ़ोन, टेबलेट आदि। 2- Mini Computer (मिनी कंप्यूटर) मिनी एक विशेष प्रकार का कंप्यूटर है जिसका आकार ना ज्यादा छोटा होता है और ना ही ज्यादा बड़ा। यह कंप्यूटर माइक्रो कंप्यूटर से बड़ा होता है लेकिन मेनफ्रेम कंप्यूटर से छोटा होता है। यह एक multi -user कंप्यूटर है। इसका मतलब यह है कि इस कंप्यूटर का उपयोग एक समय में एक या एक से अधिक यूजर कर सकते है। इसका अलावा यह multi-tasking कंप्यूटर भी होता है , यानी इस कंप्यूटर में एक समय में एक से ज्यादा कार्य किये जा सकते हैं। मिनी कंप्यूटर के उदहारण :- IBM AS/400 , और Honeywell 200 आदि। 3- Mainframe Computer (मेनफ़्रेम कंप्यूटर) मेनफ़्रेम कंप्यूटर का आकार काफी बड़ा होता है और इसका इस्तेमाल बड़ी मात्रा में डेटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है। मेनफ़्रेम कंप्यूटर के कार्य करने की क्षमता अधिक होती है। इसका आकार मिनी और माइक्रो कंप्यूटर से बड़ा होता है. यह multi-user कंप्यूटर होता है इसलिए इसका इस्तेमाल एक समय में एक से अधिक यूजर कर सकते हैं। इस कंप्यूटर का आविष्कार 1950 के दशक में IBM (इंटरनेशनल बिज़नेस मॉडल) के द्वारा किया गया था। इस कंप्यूटर का इस्तेमाल बड़ी-बड़ी कम्पनीयों और सरकारी ऑफिस में अधिक मात्रा में डेटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है। हालांकि यह कंप्यूटर काफी महंगे भी होते है। इसके उदहारण:– IBM zSeries , System z9 आदि। 4- Analog Computer (एनालॉग कंप्यूटर) एनालॉग कंप्यूटर ऐसा कंप्यूटर है जिसका इस्तेमाल एनालॉग डाटा को प्रोसेस करने के लिए किया जाता है। यह भौतिक मात्राओं को मापने के लिए उपयोगी है। इसका उपयोग विद्युत प्रवाह, तीव्रता और प्रतिरोध को मापने के लिए किया जाता है। इस कंप्यूटर का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में भी करते है। उदहारण के लिए– रेफ्रिजरेटर, स्पीडोमीटर आदि। 5- Digital Computer (डिजिटल कंप्यूटर) वह कंप्यूटर जो डिजिटल डाटा को प्रोसेस करता है उसे डिजिटल कंप्यूटर कहते हैं. यह एक ऐसा कंप्यूटर है जो कोई भी काम करने के लिए बाइनरी नंबर (0, 1) का उपयोग करता है। इस कंप्यूटर का उपयोग अधिक मात्रा में डेटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है। इस कंप्यूटर के कार्य करने की स्पीड अधिक होती है और इसकी performance भी काफी अच्छी होती है। आधुनिक समय में डिजिटल कंप्यूटर का इस्तेमाल कई कार्य के लिए किया जाता है जैसे कि :- कैलकुलेशन करने के लिए , डेटा को स्टोर करने के लिए , डेटा को ट्रांसफर करने के लिए आदि। इसके कुछ लोकप्रिय उदहारण– कैलकुलेटर, Apple Mac , IBM PC आदि। 6- Hybrid Computer (हाइब्रिड कंप्यूटर) वह कंप्यूटर जिसमें डिजिटल और एनालॉग दोनों कंप्यूटरों की विशेषताएं शामिल होती है. उसे हाइब्रिड कंप्यूटर कहते हैं। हाइब्रिड कंप्यूटर को डिजिटल और एनालॉग कंप्यूटर को आपस में मिलाकर बनाया गया है। इस कंप्यूटर का इस्तेमाल ज्यादातर जटिल गणनाओ (complex calculations) को हल करने के लिए किया जाता है। हाइब्रिड कंप्यूटर का उपयोग पेट्रोल पम्प, हवाई जहाज, हॉस्पिटल और वैज्ञानिक कार्यों में भी किया जाता है। हाइब्रिड कंप्यूटर के उदहारण– स्पीडोमीटर, थर्मोमीटर, ऑटो गैसोलिन पंप आदि। 7- Super Computer (सुपर कंप्यूटर) सुपर कंप्यूटर एक ऐसा कंप्यूटर है जिसका आकार काफी बड़ा होता है और इसे दुनिया का सबसे बड़ा कंप्यूटर माना जाता है। यह कंप्यूटर काफी तेज होते है जो अपने कार्यो को बहुत कम समय में ही पूरा कर लेते है। सुपर कंप्यूटर का उपयोग बड़ी मात्रा में डेटा को प्रोसेस करने के लिए किया जाता है। इस कंप्यूटर को दुनिया का सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर माना जाता है क्योकि इस कंप्यूटर के प्रोसेसर की performance काफी अच्छी होती है। सुपर कंप्यूटर में हजारो प्रोसेसर आपस में जुड़े होते है जिसकी वजह से यह किसी भी कार्य को तेज गति से कर पाता है। इस कंप्यूटर का उपयोग वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग से संबंधित कार्यो को पूरा करने के लिए किया जाता है जैसे की:- मौसम की भविष्यवाणी करना, और रिसर्च करना आदि। इसके कुछ लोकप्रिय उदहारण है:- परम 8000, और NUDT Tianhe-2 आदि। 8- Workstation (वर्कस्टेशन) वर्कस्टेशन एक विशेष प्रकार का कंप्यूटर है जिसका इस्तेमाल इंजीनियरिंग डिजाइन, एनीमेशन रेंडरिंग, 3D ग्राफ़िक्स और विडियो एडिटिंग जैसे कार्यो को पूरा करने के लिए किया जाता है। वर्कस्टेशन की स्टोरेज क्षमता बहुत अधिक होती है जिसकी वजह से यह बड़ी मात्रा में डेटा को स्टोर करने में सक्ष्म होता है। यह कंप्यूटर तेज गति से सभी कार्यो को करता है क्योकि इसमें एक तेज माइक्रोप्रोसेसर होता है। इस कंप्यूटर का उपयोग एक समय में केवल एक ही यूजर कर सकता है। वर्कस्टेशन का इस्तेमाल वीडियो एडिटिंग और 3D एनीमेशन करने के लिए भी किया जाता है। यह कंप्यूटर यूजर को बिलकुल सटीक आंकड़े देता है। इसके कुछ उदहारण है :- Unix-based Sun, Compaq आदि। 9- Personal Computer (पर्सनल कंप्यूटर) यह एक छोटा और सस्ता कंप्यूटर है जिसका इस्तेमाल व्यक्तिगत कार्यो को पूरा करने के लिए किया जाता है जैसे की :- असाइनमेंट पूरा करना, मूवी देखना, गेम खेलना , ब्राउज़िंग करना , प्रोजेक्ट को पूरा करना आदि।
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2024-09-11
कंप्यूटर मेमोरी क्या है?
कंप्यूटर मेमोरी एक डिवाइस होती है जिसका इस्तेमाल डेटा और सूचना को स्टोर करने के लिए किया जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो, “Computer Memory कंप्यूटर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें data को स्टोर करके रखा जाता है, बिना मेमोरी के कंप्यूटर काम नहीं करता.” जिस प्रकार मनुष्य डेटा और सूचना को स्टोर करने के अपने दिमाग का इस्तेमाल करता है उसी प्रकार कंप्यूटर data (डेटा) और information (सूचना) को स्टोर करने के लिए memory का इस्तेमाल करता है. सरल शब्दो में कहे तो “कंप्यूटर मेमोरी एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जिसका इस्तेमाल प्रोग्राम और सूचनाओं को स्टोर करने के लिए किया जाता है। मेमोरी की मदद से कंप्यूटर अपने कार्यों को पूरा करता है. “ कंप्यूटर की मेमोरी को छोटे छोटे हिस्सों में विभाजित (divide) किया जाता है जिन्हे हम cell कहते है। इन Cell में डेटा बाइनरी (0,1) के रूप में स्टोर होता है. कंप्यूटर मेमोरी इनपुट और आउटपुट दोनों प्रकार के डेटा को स्टोर करने में सक्षम होती है। कंप्यूटर मेमोरी बहुत प्रकार की होती है- प्राइमरी मेमोरी (Primary memory), सेकेंडरी मेमोरी (Secondary memory) , कैश मेमोरी (Cache Memory) और रजिस्टर मेमोरी (Register memory). Types of Computer Memory प्राइमरी मेमोरी (Primary memory) सेकेंडरी मेमोरी (Secondary memory) कैश मेमोरी (Cache Memory) रजिस्टर (Register) 1- प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory) प्राइमरी मेमोरी कंप्यूटर की मुख्य मेमोरी (main memory) होती है जो कंप्यूटर में मौजूद डेटा और सूचना (information) को स्टोर करती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, “प्राइमरी मैमोरी एक प्रकार की कंप्यूटर मेमोरी है जिसे CPU के द्वारा सीधे एक्सेस (access) किया जा सकता है।“ प्राइमरी मेमोरी को प्राइमरी स्टोरेज के नाम से भी जाना जाता है जो कंप्यूटर के मदरबोर्ड पर स्थित होती है। प्राइमरी मेमोरी को Semiconductor (अर्धचालक) पदार्थ से बनाया जाता है। इस मेमोरी की स्टोरेज क्षमता सिमित (limited) होती है जिसके कारण यह बहुत कम मात्रा में डेटा को स्टोर कर पाती है। एक कंप्यूटर में प्राइमरी मेमोरी का साइज लगभग 4 GB होता है। प्राइमरी मेमोरी Volatile और Non Volatile दोनों प्रकार की होती है। Volatile memory वह मेमोरी होती है जो कंप्यूटर के ON रहने तक ही डेटा को स्टोर करती है, कंप्यूटर के off होने पर इसमें रखा डेटा अपने आप डिलीट हो जाता है। Non-Volatile वह मेमोरी होती है जो हमेशा के लिए डेटा को स्टोर करके रखती है। सेकेंडरी मेमोरी की तुलना में प्राइमरी मेमोरी महंगी होती है लेकिन यह तेज गति (speed) के साथ डेटा को एक्सेस करती है। इस मेमोरी के दो प्रकार होते है पहला RAM (रैंडम एक्सेस मेमोरी) और दूसरा ROM (रीड ओनली मेमोरी) . प्राइमरी मेमोरी के प्रकार (i). RAM (रैम) RAM का पूरा नाम Random Access Memory (रैंडम एक्सेस मेमोरी) होता है। RAM में डेटा कंप्यूटर के ON रहने तक ही स्टोर रहता है, कंप्यूटर के OFF होने पर इसमें मौजूद डेटा अपने आप डिलीट हो जाता है। इसलिए इसे Volatile memory भी कहा जाता है। RAM को सिस्टम मेमोरी, और रीड राइट मेमोरी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें डेटा को एक्सेस करने के लिए बिजली की आवश्यकता पड़ती है। यदि कंप्यूटर बंद हो जाता है या बिजली चली जाती है तो इसमें मौजूद सारा डेटा डिलीट हो जाता है। कंप्यूटर RAM में मौजूद डेटा को तेज गति के साथ एक्सेस करता है जिसके कारण कंप्यूटर तेजी से कार्यो को पूरा कर पाता है। RAM के दो प्रकार होते है पहला SRAM (स्टेटिक रैंडम एक्सेस मेमोरी) और दूसरा DRAM (डायनामिक रैंडम एक्सेस मैमोरी) . (ii). ROM (रोम) ROM का पूरा नाम Read Only Memory (रीड ओनली मेमोरी) होता है। यह एक non volatile मैमोरी है जिसका मतलब यह है कि यह हमेशा के लिए डेटा को स्टोर करके रखती है। यदि बिजली चली जाती है और कंप्यूटर बंद हो जाता है तो भी ROM में मौजूद डेटा डिलीट नही होता। इस मेमोरी में डेटा को permanently (हमेशा के लिए) स्टोर किया जा सकता है लेकिन RAM में हम ऐसा नहीं कर सकते। ROM के तीन प्रकार होते है पहला PROM (प्रोग्रामेबल रीड ऑनली मैमोरी) दूसरा EPROM (एरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ऑनली मैमोरी) और तीसरा EEPROM (इलेक्ट्रिकली इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ऑनली मैमोरी) प्राइमरी मेमोरी की विशेषताएं (Characteristics of Primary Memory in Hindi) प्राइमरी मेमोरी में मौजूद डेटा को तेज गति के साथ एक्सेस किया जा सकता है। कैश मेमोरी (cache memory) के बाद प्राइमरी मेमोरी की ही स्पीड सबसे ज्यादा होती है। इसका इस्तेमाल कंप्यूटर को ON करने और प्रोग्राम को run करने के लिए किया जाता है. यह semiconductor (अर्धचालक) प्रदार्थ से बनी होती है. प्राइमरी मेमोरी मदरबोर्ड में स्थित होती है. यह मेमोरी ज्यादा मात्रा में डेटा को स्टोर नहीं कर सकती क्योकि इसकी स्टोरेज क्षमता (storage capacity) बहुत कम होती है। प्राइमरी मेमोरी सीधे CPU के साथ संचार (communication) करती है। 2 – Secondary Memory (सेकेंडरी मेमोरी) सेकेंडरी मेमोरी भी कंप्यूटर की एक मेमोरी है जिसे CPU के द्वारा सीधे (direct) एक्सेस नहीं किया जा सकता। सेकेंडरी मेमोरी कंप्यूटर का हिस्सा नहीं होती है इसे कंप्यूटर में अलग से जोड़ा जाता है। सेकेंडरी मेमोरी एक प्रकार की non-volatile मेमोरी है अर्थात् इसमें डेटा हमेशा के लिए स्टोर रहता है यानी कि अगर कंप्यूटर बंद भी हो जाए तो इसका डेटा डिलीट नही होता। Secondary memory का इस्तेमाल permanent डेटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है ताकि भविष्य में यूजर उस डेटा का उपयोग कर सके। प्राइमरी मेमोरी की तुलना में सेकेंडरी मेमोरी की स्टोरेज क्षमता अधिक होती है जिसके कारण यह ज्यादा मात्रा में डेटा को स्टोर कर सकती है। इस मेमोरी का इस्तेमाल बड़े आकार वाले डेटा जैसे (वीडियो, इमेज, ऑडियो, फाइल) को स्टोर करने के लिए किया जाता है। इस मेमोरी में यदि बिजली चली जाती है तो भी डेटा डिलीट नहीं होता। CPU सीधे सेकेंडरी मेमोरी को एक्सेस नहीं कर सकता। इसे ऐसा करने के लिए सेकेंडरी मेमोरी के डेटा को प्राइमरी मेमोरी में ट्रांसफर करना होगा इसके बाद CPU सेकडरी मेमोरी को एक्सेस कर पायेगा। इस मेमोरी को एक्सटर्नल मेमोरी या सहायक मेमोरी भी कहते है। इस मेमोरी में हम डेटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर कर सकते है। यह मेमोरी प्राइमरी मेमोरी की तुलना में काफी सस्ती होती है। सेकेंडरी में मेमोरी के कुछ उदहारण :- हार्ड डिस्क , pendrive , DVD, CD, और मैग्नेटिक टेप आदि। सेकेंडरी मेमोरी की विशेषताएं (Characteristics of Secondary Memory in Hindi) यह मेमोरी अधिक मात्रा में डेटा को स्टोर कर सकती है। इसकी स्टोरेज क्षमता अधिक होती है। इसमें बिजली चले जाने पर डेटा डिलीट नहीं होता। यह प्राइमरी मेमोरी की तुलना में सस्ती होती है। इस मेमोरी की स्पीड धीमी (slow) होती है। इसके डेटा को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में आसानी से ट्रान्सफर कर सकते हैं. इस मेमोरी को CPU के द्वारा सीधे (direct) एक्सेस नहीं किया जा सकता। 3- Cache Memory (कैश मेमोरी) Cache Memory एक तेज गति से काम करने वाली मेमोरी है जिसका इस्तेमाल सीपीयू की स्पीड तथा परफॉरमेंस को बढ़ाने के लिए किया जाता है। कैश मेमोरी एक हाई-स्पीड मेमोरी है जिसका आकार तो छोटा होता है लेकिन प्राइमरी मेमोरी से तेज होती है। इस मेमोरी को एक्सेस करना आसान है और CPU इसे तेज गति से एक्सेस करता है। इस मेमोरी को अन्य डिवाइस के द्वारा एक्सेस नहीं किया जा सकता बल्कि इसे केवल CPU के द्वारा ही एक्सेस किया जा सकता है। कैश मेमोरी में उस डेटा या फाइलों को स्टोर किया जाता है जिनका इस्तेमाल CPU नियमित रूप से करता है। जब भी सीपीयू को कोई डेटा चाहिए होता है तो सीपीयू सबसे पहले उस डेटा को कैश मेमोरी में ढूंढता है। कैश मैमोरी के प्रकार – इसके तीन प्रकार होते हैं:- L1 Cache L2 Cache L3 Cache L1 Cache यह एक छोटी मेमोरी होती है जिसका आकार 2KB से 64 KB तक होता है। L1 cache में दो प्रकार के cache होते हैं पहला निर्देश कैश (instruction cache) जो CPU द्वारा आवश्यक निर्देशों को स्टोर करते है और दूसरा डेटा कैश (data cache) जो CPU द्वारा आवश्यक डेटा को स्टोर करते है। L2 Cache L2 cache का साइज़ L1 cache से थोडा बढ़ा होता है और इसकी स्पीड L1 cache से थोड़ी कम होती है। इसका आकार 256 kb से 512 kb के बीच होता है। L3 Cache यह साइज में L1 cache और L2 cache से थोड़ी बड़ी होती है और इसकी स्पीड L1 cache और L2 cache मेमोरी से थोड़ी कम होती है। इसका आकार 1 MB से 8 MB तक होता है। कैश मैमोरी की विशेषताएं (Characteristics of Cache Memory in Hindi) Cache Memory प्राइमरी मेमोरी से भी अधिक Fast (तेज) होती है. इसमें डेटा हमेशा के लिए स्टोर नहीं रहता. यह बहुत कम मात्रा में data को स्टोर कर सकता है. इसकी कीमत बहुत ज्यादा होती है. 4- Register (रजिस्टर) रजिस्टर कंप्यूटर की सबसे छोटी मेमोरी होती है और काफी तेज होती है। Register का प्रयोग CPU के द्वारा बहुत सारे कार्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है। जब हम कोई इनपुट कंप्यूटर को देते है तो ये इनपुट रजिस्टर में store हो जाते है और कंप्यूटर के प्रोसेसिंग के बाद जो आउटपुट मिलता है वो भी register से ही प्राप्त होता है। तो हम कह सकते है कि register का प्रयोग CPU के द्वारा data को प्रोसेस करने के लिए किया जाता है। यह मुख्य मेमोरी का हिस्सा बिलकुल नहीं है। यह मेमोरी temporary डेटा और निर्देशों को स्टोर करती है जिन निर्देशों का उपयोग तुरंत किसी कार्य को करने के लिए किया जाता है। कंप्यूटर के कार्य करने की स्पीड उसमें मौजूद रजिस्टर की संख्या पर निर्भर होती है। अर्थात् कंप्यूटर में जितने ज्यादा रजिस्टर होंगे उतनी ही ज्यादा कंप्यूटर की स्पीड होगी. रजिस्टर कई प्रकार के होते है जैसे :- अड्रेस रजिस्टर , प्रोग्राम काउंटर और डेटा रजिस्टर आदि। Types of Register in Hindi – रजिस्टर के प्रकार 1- Data Register – यह एक 16-बिट रजिस्टर है जिसका उपयोग CPU के द्वारा प्रोसेस किये जाने वाले operands (variables) को स्टोर करने के लिए किया जाता है। 2- Program Counter – प्रोग्राम काउंटर एक 16 bit रजिस्टर होता है जो execute होने वाली अगली instruction (निर्देश) के address को स्टोर करके रखता है। 3- Instructor Register – यह भी एक 16-बिट रजिस्टर है जो उन निर्देशों को स्टोर करता जो main memory से प्राप्त होते है। 4- Accumulator – यह रजिस्टर 16 बिट का होता है जिसका इस्तेमाल कंप्यूटर के द्वारा उतपन्न (produce) आउटपुट को स्टोर करने के लिए किया जाता है। 5- Address Register – यह एक 12 बिट रजिस्टर है जिसका इस्तेमाल मेमोरी लोकेशन के address को स्टोर करने के लिए किया जाता है. 6- I/O Register – यह रजिस्टर किसी I/O डिवाइस के एड्रेस को स्टोर करता है।
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2024-09-12
Generation of Computer
Generation of Computer कम्प्यूटर की तकनीक को विकसित होने में लगभग पांच पीढियों का वक़्त लग गया है। इसीलिए कंप्यूटर की पांच पीढियां होती है। जो कि नीचे दी गयी हैं- पहली पीढ़ी के कंप्यूटर (1946 से 1959 तक) दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर (1959 से 1965 तक) तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर (1965 से 1971 तक) चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर (1971 से 1980 तक) पांचवी पीढ़ी के कंप्यूटर (वर्तमान में मौजूद) First Generation .पहली पीढ़ी के कंप्यूटर साइज़ में काफी बड़े हुआ करते थे। आप इनके size (आकार) का अन्दाज़ा इसी बात से लगा सकते है कि इन कंप्यूटर को रखने के लिए एक कमरे की ज़रूरत पड़ती थी। .पहली पीढ़ी की शुरुआत 1940 में हुई और इसका अंत 1956 में हुआ। .इस पीढ़ी के कंप्यूटरों में कांच के बने वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग किया जाता था। इनमें हजारों की संख्या में वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता था इसलिए इन कंप्यूटरों का आकार बहुत बड़ा होता था। .पहली पीढ़ी के कंप्यूटर इतने advance और modern नहीं हुआ करते थे। इनमे काफी कमियां थी। ये कंप्यूटर काम करते वक़्त जल्दी गर्म हो जाया करते थे और reliable (विस्वश्नीय) नहीं हुआ करते थे। .पहली पीढ़ी के कंप्यूटर का उपयोग गणना करने, डेटा को स्टोर करने, और वैज्ञानिक कार्यों के लिए किया जाता था। .इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मुख्य रूप से batch processing ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था। .इन कम्प्यूटरों में प्रोग्रामिंग करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल काम था और ये बिजली भी बहुत खर्च करते थे। पहली पीढ़ी के कंप्यूटर के उदाहरण ENIAC EDVAC UNIVAC IBM-701 EDSAC IBM 650 Advantages of First Generation इस पीढ़ी के कंप्यूटर डाटा की calculation (गणना) बहुत तेजी से करते थे। ये millisecond में गणना कर सकते थे। उस समय वैक्यूम ट्यूब आसानी से मिल जाया करते थे। वैक्यूम ट्यूब की technology ज्यादा महंगी नहीं थी। इन कम्प्यूटरों में scientific (वैज्ञानिक) काम कर सकते थे। इन कम्प्यूटरों में information और data को स्टोर करने की क्षमता थी। Second Generation कंप्यूटर की दूसरी पीढ़ी की शुरुआत 1956 में हुई थी और इसका अंत 1963 में हुआ था। दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर में transistor (ट्रांजिस्टर) का इस्तेमाल किया जाता था। ट्रांजिस्टर वैक्यूम ट्यूब के मुकाबले काफी छोटे होते थे। ट्रांजिस्टर के कारण कंप्यूटर का साइज पहली पीढ़ी के मुकाबले छोटा हो गया। ट्रांजिस्टर के आने के बाद कंप्यूटर के क्षेत्र में काफी ज्यादा विकास हुआ। ट्रांजिस्टर, वैक्यूम ट्यूब की तुलना में काफी सस्ते थे , size में छोटे थे , ज्यादा reliable थे , और काफी तेज काम करते थे। इस पीढ़ी में असेंबली लैंग्वेज और हाई-लेवल लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता था। इस पीढ़ी के कंप्यूटरों में batch processing और multi-programming ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता था। दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर के उदाहरण – UNIVAC 1108 CDC 1604 Honeywell 400CDC 3600 IBM 7094 Third Generation कंप्यूटर की तीसरी पीढ़ी की शुरुआत 1964 में हुई थी और इसका अंत 1971 में हुआ था। तीसरी पीढ़ी आने तक कंप्यूटर के छेत्र में काफी ज्यादा विकास हो चूका था। इस पीढ़ी में कंप्यूटर और भी ज्यादा advance और modern हो गए थे। तीसरी पीढ़ी में computer के अंदर ट्रांजिस्टर की जगह IC (इंटीग्रेटेड सर्किट)) का इस्तेमाल किया जाता था। IC एक तरह की चिप है जो कि सिलिकॉन से बनी हुई होती है। इसलिए इसको सिलिकॉन चिप भी कहा जाता है। तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर काफी ज्यादा reliable (विश्वसनीय) थे। तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर की काम करने की स्पीड पिछले दोनों पीढ़ियों के कंप्यूटर से बेहतर थी। Integrated Chip (IC) आने के कारण कंप्यूटर का साइज काफी छोटा हो गया था। इसके साथ साथ मैमोरी की क्षमता भी काफी ज्यादा बढ़ गई थी। इस पीढ़ी में time sharing और multiprogramming ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता था। इस पीढ़ी में हाई लेवल लैंग्वेज जैसे कि – Cobol, Pascal आदि का use किया जाता था। तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर के उदाहरण IBM 370 PDP-11 UNIVAC 1108 Honeywell-6000 DEC series ICL 2900 Fourth Generation कंप्यूटर के चौथी पीढ़ी की शुरुआत 1970 में हुई थी और इसका अंत 1985 में हुआ। कंप्यूटर की चौथी पीढ़ी में IC की जगह माइक्रोप्रोसेसर का इस्तेमाल किया जाता है। माइक्रोप्रोसेसर में बहुत सारे LSI Circuit होते है। चौथी पीढ़ी आने के बाद कंप्यूटर और भी ज्यादा आधुनिक हो गए । इस पीढ़ी के आते ही कंप्यूटर के काम करने की क्षमता और speed दोनों ही बढ़ गई। इस जनरेशन ने computer के छोटे size में ही काफी ज्यादा features उपलब्ध करवा दिए। यानी कह सकते है कि इसका size काफी छोटा हो गया और इसके साथ-साथ कंप्यूटर के सारे features भी install हो गए। इस पीढ़ी में real time, time sharing, और distributed ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर हाई लेवल लैंग्वेज जैसे कि – C, C++ आदि को सपोर्ट करते हैं। इस पीढ़ी में पर्सनल कंप्यूटर (PC) का उपयोग काफी ज्यादा बढ़ गया। चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर के उदाहरण Micral IBM 5100 Altair 880 Fifth Generation पांचवी पीढ़ी के कंप्यूटर अभी तक सभी पीढ़ियों से बेहतर और advance (आधुनिक) है। आप इस बात का अंदाज़ा इस चीज़ से लगा सकते है कि ये कंप्यूटर बिलकुल इंसानो की तरह ही व्यहवार करते है। पांचवीं पीढ़ी में AI (Artificial Intelligence) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान समय में कंप्यूटर की पांचवी पीढ़ी चल रही है और यह कंप्यूटर की आखरी पीढ़ी है। इस पीढ़ी में हाई लेवल भाषा जैसे कि – C, C++, Java, और .Net आदि का उपयोग किया जाता है। पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर का इस्तेमाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में, मनोरंजन के क्षेत्र में, और रोबोट बनाने में किया जाता है। आजकल game के छेत्र में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इन computers में सबसे ज्यादा speed पाई जाती है और इनके काम करने की क्षमता भी काफी ज्यादा है। धीरे धीरे कंप्यूटर की पांचवी पीढ़ी को और भी ज्यादा विकसित किया जा रहा है। ताकि यह और भी ज्यादा advance हो सके। पांचवी पीढ़ी के कंप्यूटर के उदाहरण परम सुपर कंप्यूटर लैपटॉप डेस्कटॉप वर्क स्टेशन नोटबुक
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2024-09-17
What is Linux
-Linux एक open-source ऑपरेटिंग सिस्टम है जो कंप्यूटर और यूज़र के बीच इंटरफ़ेस की तरह कार्य करता है। -इसका अविष्कार Linus Torvalds ने 1991 में किया था। -Linux एक ओपन-सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसका मतलब यह है कि इसका इस्तेमाल कोई भी free (मुफ्त) में कर सकता है और इसको modify भी कर सकता है। -Windows एक closed-source ऑपरेटिंग सिस्टम है अर्थात इसको modify नही किया जा सकता। इसे केवल कंपनी ही modify कर सकती है। जबकि Linux में हम अपनी सुविधा के अनुसार बदलाव भी कर सकते हैं। -शुरुआत में, Linux को केवल Personal Computer के लिए ही बनाया गया था परंतु बाद में इसका इस्तेमाल server, mainframe computer, और supercomputer में होने लगा। इसके अलावा Linux का इस्तेमाल राऊटर, कार, टेलीविज़न (TV), Smart watch, और वीडियो गेम कंसोल में भी किया जाता है। -आजकल Android में भी Linux Kernel का प्रयोग किया जाता है। -लिनक्स सबसे तेजी से grow होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है इसका इस्तेमाल आजकल स्मार्ट वॉच से लेकर सुपरकंप्यूटर तक में होता है। -दूसरे शब्दों में कहें तो, “Linux एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है जो कंप्यूटर सिस्टम के हार्डवेयर और resources को maintain करके रखता है। इसके अलावा यह हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच संचार (communication) करने में मदद करता है।” Advantages of Linux:- 1- Open-Source (ओपन–सोर्स) Linux का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह एक open source ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसके कारण इसका source code सबके लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम को आसानी से modify भी किया जा सकता है। 2- Security (सुरक्षा) Linux की security दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में बहुत ही बेतहर होती है क्योकि इसमें यूजर को access करने के लिए login id और पासवर्ड की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा Linux को सिक्योरिटी के लिए किसी antivirus की ज़रूरत नहीं पड़ती। 3- Free (मुफ्त) Linux का एक और फायदा यह है कि कोई भी यूजर इसको आसानी से free में डाउनलोड करके इस्तेमाल कर सकता है। लगभग सभी linux free होते है। यानी यूजर को इसका इस्तेमाल करने के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ते। 4- Lightweight (हल्का) Linux OS काफी lightweight होता है। यानी कि इस ऑपरेटिंग सिस्टम का size बहुत कम होता है। इसको कंप्यूटर में चलाने के लिए बहुत ज्यादा features की ज़रूरत नहीं पड़ती और इसको चलाने के लिए कंप्यूटर को ज्यादा मेमोरी स्पेस की भी ज़रूरत नहीं पड़ती। 5- Stability (स्थिरता) – Linux दुसरे ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में स्थिर (stable) होते है। अर्थात इसको चलाने के लिए कंप्यूटर सिस्टम को बार बार reboot करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। 6- Performance (प्रदर्शन) Linux की performance दुसरे ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में बहुत अच्छी होती है। इसमें एक समय में बहुत सारे लोग एक साथ काम कर सकते हैं और यह hang भी नही होता। 7- Flexibility यह ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत ज्यादा flexible होता है। इसका प्रयोग embedded system और server application के लिए भी किया जा सकता है। 8- Software Update (सॉफ्टवेयर अपडेट) – Linux में, किसी भी सॉफ्टवेयर को तेजी से और आसानी से update किया जा सकता है। 9- Graphical user interface (ग्राफिकल यूजर इंटरफ़ेस) – लिनक्स एक command पर आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम है परंतु यह windows की तरह interactive यूजर इंटरफ़ेस प्रदान करता है। 10– यह सभी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को सपोर्ट करता है जैसे कि- C, C++, Java, Python, और Ruby आदि। 11– इसमें user का डेटा private रहता है। 12– यह एक समय में कई सारें tasks (कार्यों) को पूरा करता है। 13– इसको install करना आसान होता है।
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2024-09-17
Memory Unit
Kilobyte (KB) 1 KB = 1024 Bytes 2 Megabyte (MB) 1 MB = 1024 KB 3 GigaByte (GB) 1 GB = 1024 MB 4 TeraByte (TB) 1 TB = 1024 GB 5 PetaByte (PB) 1 PB = 1024 TB
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Admin
2024-09-18
Memory Unit
Kilobyte (KB) 1 KB = 1024 Bytes 2 Megabyte (MB) 1 MB = 1024 KB 3 GigaByte (GB) 1 GB = 1024 MB 4 TeraByte (TB) 1 TB = 1024 GB 5 PetaByte (PB) 1 PB = 1024 TB
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